मछलियों की आंखें यह क्या है जो मन को किसी परछाई-सा हिलाता है यह तो हवा नहीं चिरपरिचित सुबह वाली चिड़ियाँ जिसमें आ सुना…
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Savita Singh
Savita Singh
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह की कवितों भारतीय स्त्री की कवितों हैं, उनमें नारीवादी वैचारिकी का ठोस आधार है. उनका मानना है कि ‘स्त्री में अगर स्त्री की चेतना नहीं है तो उसके अंदर पुरुष की चेतना है. क्योंकि ये दो ही तरह की चेतनों हैं जो पूरी सृष्टि को चला रही हैं.’ उनके प्रकाशित तीनों संग्रहों में यह बात रेखांकित भी की गयी है. प्रस्तुत ग्यारह कविताओं में सविता सिंह खुद से मुख़ातिब हैं. उदासी में लिपटी हुई कामनों बार-बार लौटती हैं, चटख लाल नहीं थिर पीले पूâल यहाँ खिले हैं. सविता सिंह की काव्य-यात्रा आज जिस मोड़ पर है वहां से विचार, अनुभव और कला के संतुलन से हिंदी कविता का एक मुक्कमिल चेहरा बनता है. उनकी नई ग्यारह कवितों आपके लिए.