अब जब कि पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज में तब्दील हो चुकी है अथवा सुनियोजित ढंग से तब्दील कर दी गई है, तो विश्व के हर एक जन के समक्ष जीवन की चुनौतियां लगभग एक जैसी ही है। शोषण, दमन, आतंक और िंहसा का स्वरूप कमोवेश एक समान है। स्त्रियों और अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार भी कमोवेश एक जैसा ही है। वंचित और दलित हर देश और समाज में हैं, भले ही उनका स्वरूप और स्थितियां थोड़ी भिन्न हों। पूंजीवाद का नंगा नाच सर्वत्र है। मजदूरों के प्रति हिकारत का भाव हर कहीं है। सांप्रदायिकता, नस्लीय हिंसा और असहिष्णुता भिन्न-भिन्न तरीके से सामने आती ही रहती हैं। यह सब दुनिया में निरंतर घटित हो रहा है, तो इसका प्रतिकार भी प्रखर तरीके से दर्ज हो रहा है। दुनियाभर का साहित्य इस प्रतिकार को अभिव्यक्ति दे रहा है।
एक तरह से विश्व साहित्य विश्व की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों का दर्पण है। वैश्विक स्तर पर हर दौर के साहित्य में आप आसानी से देख सवâते हैं कि किस तरह की मानवीय त्रासदियां घटित हुई हैं। हर बड़ी त्रासदी का गवाह विश्व साहित्य है। हजारों काव्य कृतियां, सैकड़ों कहानियां और पचासों उपन्यास इस बात के प्रमाण हैं कि दुनिया किन स्थितियों से होकर गुजरी है! किस दौर में वैâसे संकट आए मानवता के समक्ष और वैâसे इनसे पार पाया गया!! एक तरह से देखें, तो विश्व साहित्य में हर युग प्रामाणिकता के साथ विद्यमान है।
विश्व साहित्य दुखों का दस्तावेज ही नहीं है, उपलब्धियों का महाकाव्य भी है। मानव प्रगति और जिजीविषा का बखान है इसमें। इसमें जीवन की ऊंचाइयां हैं। आकांक्षाएं हैं। महान संघर्ष हैं। वैज्ञानिक आविष्कार हैं। इन आविष्कारों के जरिए मानवता के पक्ष में किए गए यत्न हैं। इन्हीं आविष्कारों का प्रयोग मानवता को क्षति पहुंचाने में भी किया गया है। मानव के लालचों की अभिव्यक्ति है विश्व साहित्य में, तो इसमें महान त्याग भी हैं। दरअसल सच्चा साहित्य अपने समकाल का प्रतििंबब होता है। वह एक जीवन-दृष्टि देता है। यथार्थ से मुठभेड़ करता है और राह दिखाता है। विश्व साहित्य का ध्येय भी यही है।
निश्चित रूप से हमारे दौर में विश्व साहित्य में नए विषय हैं, जिनमें नई भंगिमाएं हैं। विभिन्न संस्कृतियों का संवाद है। इस साहित्य में जो स्थानीयता का स्पर्श है, वही उसकी विशिष्टता है। चूंकि यह दौर सूचना क्रांति का है, इसलिए एक छोटी सी घटना भी साहित्य में दस्तावेज बन जाती है। मामूली लगनेवाली घटनाएं भी बड़ी कृति का रूप ले लेती हैं। दुनिया के किसी भी कोने में कोई त्रासदी सामने आती है, तो वह समूची मानवता की त्रासदी में रूपांतरित हो जाती है। इसके बाद वैश्विक स्तर पर उसका प्रतिकार होता है। विभिन्न प्रतिक्रियाएं दर्ज होती हैं। ये प्रतिक्रियाएं कई बार सीधे दर्ज होती हैं, तो कई बार इनका किसी बड़ी कलात्मक कृति में रूपांतर हो जाता है। कई बार ये अभिधा में बात करती हैं, तो कई बार इनका रूप व्यंजनात्मक हो जाता है। निश्चित रूप से यह दौर बहुत विशिष्ट है। विशिष्ट इस अर्थ में कि कोई भी बड़ी कृति अब मात्र एक ही क्लिक में वैश्विक हो जाती है। उसका प्रभाव स्थानिक नहीं रहता। उसका मूल्यांकन भी विश्व स्तर होने लगता है।
(लेखक हिंदी के जाने-माने कवि, कथाकार और पत्रकार हैं। इस समय टाइम्स समूह के हिंदी अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ में सहायक संपादक हैं।)